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कभी कभी अल्फाज नही होते

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पिछले कई दिनों से कोशिश की उसे समझाने की पर उसे समझा नही पाया रोया गिरगिराया बिलखता रहा पर उसने एक न सुनी, वो भी सही हो थी आखिर मैंने गलती पर गलती करता रहा झूठ बोले उसे वो कैसे यकीन करती और क्यूं वो अपनी जगह बिल्कुल सही थी, पर मैं क्या करू मेरा तो ऐसा लग रहा मेरी पूरी बसी बसाई दुनिया उजड़ रही है । कैसे समझाऊं कैसे कुछ नही समझ पा रहा कैसे मनाऊं अपने सोना को कैसे कल खुद से टिकट बुक करी उसके जाने की करते वक्त कसम से दिल कर रहा था काश यह उंगलियां जिस्म से अलग हो जाती, आज २५ जनवरी जैसे जैसे उसके जाने का समय नजदीक आ रहा है एक एक पल मरता जा रहा हूं जानता हूं उसे भी बहुत तकलीफ हो रही है,पर वो कहेगी नही क्योंकि वो इस पल खुद को कमजोर नहीं करना चाहती, पर मैं अपनी सोना को कैसे मनाऊं कैसे जी कर रहा है जोर जोर से गले फार फार कर चिल्लाऊं रोऊं । वक्त आ गया उसे अपने बच्चे के साथ स्टेशन पर ले जाने का अपने आंखों से अपनी जान को ओझल देखने का दिल जरा सा भी नही है एक अजीब सा दर्द महसूस कर रहा हूं लेकिन साला किस्मत देखो किसी को बता भी नही सकता किसी को नही क्योंकि अपने प्यार को दुनिया से सामने मजाक